Wednesday 3 December 2014

जीवन फूलों की सेज नहीं

कैसे सपना उतरे आंखो में
जब नींद ही किरचें बोती है
जीवन फूलों की सेज नहीं
कांटो की कठिन चुनौती है
तम की खातिर पास मेरे
मुठ्ठी भर बस ज्योती है
तार तार तर दामन यूं ही
बरखा भी क्यूं भिगोती है
जहाँ कहीं से गुज़रुंगा मैं
वो खड़ी वहीं पर होती है
जिसे देख के मैं लिखता हूँ
पिए चांदनी वो सोती है

2 comments:


  1. जीवन फूलों की सेज नहीं
    कांटो की कठिन चुनौती है
    तम की खातिर पास मेरे
    मुठ्ठी भर बस ज्योती है
    तार तार तर दामन यूं ही
    बरखा भी क्यूं भिगोती है
    बहुत खूब !

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